Saturday, 14 March 2015

-स्वामी विवेकानन्द

किसी बात से तुम उत्साहहीन न होओजब तक ईश्वर की कृपा हमारे ऊपर हैकौन इस पृथ्वी पर हमारी उपेक्षा कर सकता हैयदि तुम अपनी अन्तिम साँस भी ले रहे हो तो भी न डरना। सिंह की शूरता और पुष्प की कोमलता के साथ काम करते रहो। (वि.स.४/३२०)

-स्वामी विवेकानन्द

§  लोग तुम्हारी स्तुति करें या निन्दालक्ष्मी तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या न होतुम्हारा देहान्त आज हो या एक युग मेतुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट न हो। (वि.स.६/८८)

-स्वामी विवेकानन्द

§  श्रेयांसि बहुविघ्नानि अच्छे कर्मों में कितने ही विघ्न आते हैं। -- प्रलय मचाना ही होगाइससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। कुछ परवाह नहीं। दुनीया भर में प्रलय मच जायेगावाह! गुरु की फतह! अरे भाई श्रेयांसि बहुविघ्नानिउन्ही विघ्नों की रेल पेल में आदमी तैयार होता है। मिशनरी फिशनरी का काम थोडे ही है जो यह धक्का सम्हाले! ....बडे - बडे बह गयेअब गडरिये का काम है जो थाह लेयह सब नहीं चलने का भैयाकोई चिन्ता न करना। सभी कामों में एक दल शत्रुता ठानता हैअपना काम करते जाओ किसी की बात का जवाब देने से क्या कामसत्यमेव जयते नानृतंसत्येनैव पन्था विततो देवयानः (सत्य की ही विजय होती हैमिथ्या की नहींसत्य के ही बल से देवयानमार्ग की गति मिलती है।) ...धीरे - धीरे सब होगा।

-स्वामी विवेकानन्द

§  वीरता से आगे बढो। एक दिन या एक साल में सिध्दि की आशा न रखो। उच्चतम आदर्श पर दृढ रहो। स्थिर रहो। स्वार्थपरता और ईर्ष्या से बचो। आज्ञा-पालन करो। सत्यमनुष्य -- जाति और अपने देश के पक्ष पर सदा के लिए अटल रहोऔर तुम संसार को हिला दोगे। याद रखो -- व्यक्ति और उसका जीवन ही शक्ति का स्रोत हैइसके सिवाय अन्य कुछ भी नहीं। (वि.स. ४/३९५)

-स्वामी विवेकानन्द

§  इस तरह का दिन क्या कभी होगा कि परोपकार के लिए जान जायेगीदुनिया बच्चों का खिलवाड नहीं है -- बडे आदमी वो हैं जो अपने हृदय-रुधिर से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं- यही सदा से होता आया है -- एक आदमी अपना शरीर-पात करके सेतु निर्माण करता हैऔर हज़ारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं। एवमस्तु एवमस्तुशिवोsहम् शिवोsहम् (ऐसा ही होऐसा ही हो- मैं ही शिव हूँमैं ही शिव हूँ। )

-स्वामी विवेकानन्द

§  मैं चाहता हूँ कि मेरे सब बच्चेमैं जितना उन्नत बन सकता थाउससे सौगुना उन्न्त बनें। तुम लोगों में से प्रत्येक को महान शक्तिशाली बनना होगा- मैं कहता हूँअवश्य बनना होगा। आज्ञा-पालनध्येय के प्रति अनुराग तथा ध्येय को कार्यरूप में परिणत करने के लिए सदा प्रस्तुत रहना -- इन तीनों के रहने पर कोई भी तुम्हे अपने मार्ग से विचलित नहीं कर सकता। (वि.स.६/३५२)

-स्वामी विवेकानन्द

§  मन और मुँह को एक करके भावों को जीवन में कार्यान्वित करना होगा। इसीको श्री रामकृष्ण कहा करते थे, "भाव के घर में किसी प्रकार की चोरी न होने पाये।" सब विषओं में व्यवहारिक बनना होगा। लोगों या समाज की बातों पर ध्यान न देकर वे एकाग्र मन से अपना कार्य करते रहेंगे क्या तुने नहीं सुनाकबीरदास के दोहे में है- "हाथी चले बाजार मेंकुत्ता भोंके हजार साधुन को दुर्भाव नहिंजो निन्दे संसार" ऐसे ही चलना है। दुनिया के लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। उनकी भली बुरी बातों को सुनने से जीवन भर कोई किसी प्रकार का महत् कार्य नहीं कर सकता। (वि.स.३/३८१)

-स्वामी विवेकानन्द

§  अन्त में प्रेम की ही विजय होती है। हैरान होने से काम नहीं चलेगा- ठहरो- धैर्य धारण करने पर सफलता अवश्यम्भावी है- तुमसे कहता हूँ देखना- कोई बाहरी अनुष्ठानपध्दति आवश्यक न हो- बहुत्व में एकत्व सार्वजनिन भाव में किसी तरह की बाधा न हो। यदि आवश्यक हो तो "सार्वजनीनता" के भाव की रक्षा के लिए सब कुछ छोडना होगा। मैं मरूँ चाहे बचूँदेश जाऊँ या न जाऊँतुम लोग अच्छी तरह याद रखना किसार्वजनीनता- हम लोग केवल इसी भाव का प्रचार नहीं करते कि, "दुसरों के धर्म का द्वेष न करना"नहींहम सब लोग सब धर्मों को सत्य समझते हैं और उन्का ग्रहण भी पूर्ण रूप से करते हैं हम इसका प्रचार भी करते हैं और इसे कार्य में परिणत कर दिखाते हैं सावधान रहनादूसरे के अत्यन्त छोटे अधिकार में भी हस्तक्षेप न करना - इसी भँवर में बडे-बडे जहाज डूब जाते हैं पुरी भक्तिपरन्तु कट्टरता छोडकरदिखानी होगीयाद रखना उन्की कृपा से सब ठीक हो जायेगा।

-स्वामी विवेकानन्द

§  जिस तरह होइसके लिए हमें चाहे जितना कष्ट उठाना पडे- चाहे कितना ही त्याग करना पडे यह भाव (भयानक ईर्ष्या) हमारे भीतर न घुसने पाये- हम दस ही क्यों न हों- दो क्यों न रहें- परवाह नहीं परन्तु जितने हों सम्पूर्ण शुध्दचरित्र हों।

-स्वामी विवेकानन्द

§  नीतिपरायण तथा साहसी बनोअन्त: करण पूर्णतया शुध्द रहना चाहिए। पूर्ण नीतिपरायण तथा साहसी बनो -- प्रणों के लिए भी कभी न डरो। कायर लोग ही पापाचरण करते हैंवीर पुरूष कभी भी पापानुष्ठान नहीं करते -- यहाँ तक कि कभी वे मन में भी पाप का विचार नहीं लाते। प्राणिमात्र से प्रेम करने का प्रयास करो। बच्चोतुम्हारे लिए नीतिपरायणता तथा साहस को छोडकर और कोई दूसरा धर्म नहीं। इसके सिवाय और कोई धार्मिक मत-मतान्तर तुम्हारे लिए नहीं है। कायरतापाप्असदाचरण तथा दुर्बलता तुममें एकदम नहीं रहनी चाहिएबाक़ी आवश्यकीय वस्तुएँ अपने आप आकर उपस्थित होंगी।(वि.स.१/३५०)

-स्वामी विवेकानन्द

§  शक्तिमानउठो तथा सामर्थ्यशाली बनो। कर्मनिरन्तर कर्मसंघर्ष निरन्तर संघर्ष! अलमिति। पवित्र और निःस्वार्थी बनने की कोशिश करो -- सारा धर्म इसी में है। (वि.स.१/३७९)

-स्वामी विवेकानन्द

§  क्या संस्कृत पढ रहे होकितनी प्रगति होई हैआशा है कि प्रथम भाग तो अवश्य ही समाप्त कर चुके होगे। विशेष परिश्रम के साथ संस्कृत सीखो। (वि.स.१/३७९-८०)

-स्वामी विवेकानन्द

§  शत्रु को पराजित करने के लिए ढाल तथा तलवार की आवश्यकता होती है। इसलिए अंग्रेज़ी और संस्कृत का अध्ययन मन लगाकर करो। (वि.स.४/३१९)

-स्वामी विवेकानन्द

§  बच्चोंधर्म का रहस्य आचरण से जाना जा सकता हैव्यर्थ के मतवादों से नहीं। सच्चा बनना तथा सच्चा बर्ताव करनाइसमें ही समग्र धर्म निहित है। जो केवल प्रभु-प्रभु की रट लगाता हैवह नहींकिन्तु जो उस परम पिता के इच्छानुसार कार्य करता है वही धार्मिक है। यदि कभी कभी तुमको संसार का थोडा-बहुत धक्का भी खाना पडेतो उससे विचलित न होनामुहूर्त भर में वह दूर हो जायगा तथा सारी स्थिति पुनः ठीक हो जायगी। (वि.स.१/३८०)

-स्वामी विवेकानन्द

§  बालकोंदृढ बने रहोमेरी सन्तानों में से कोई भी कायर न बने। तुम लोगों में जो सबसे अधिक साहसी है - सदा उसीका साथ करो। बिना विघ्न - बाधाओं के क्या कभी कोई महान कार्य हो सकता हैसमयधैर्य तथा अदम्य इच्छा-शक्ति से ही कार्य हुआ करता है। मैं तुम लोगों को ऐसी बहुत सी बातें बतलाताजिससे तुम्हारे हृदय उछल पडतेकिन्तु मैं ऐसा नहीं करूँगा। मैं तो लोहे के सदृश दृढ इच्छा-शक्ति सम्पन्न हृदय चाहता हूँजो कभी कम्पित न हो। दृढता के साथ लगे रहोप्रभु तुम्हें आशीर्वाद दे। सदा शुभकामनाओं के साथ तुम्हारा विवेकानन्द। (वि.स.४/३४०)

-स्वामी विवेकानन्द


§  जब तक जीनातब तक सीखना' -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। (वि.स.१/३८६)

-स्वामी विवेकानन्द



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