Saturday, 14 March 2015

स्वामी विवेकानन्द

उठोजागो और तब तक रुको नही जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये ।

-स्वामी विवेकानन्द

§  जो सत्य हैउसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहोउससे किसी को कष्ट होता है या नहींइस ओर ध्यान मत दो। दुर्बलता को कभी प्रश्रय मत दो। सत्य की ज्योति बुद्धिमान’ मनुष्यों के लिए यदि अत्यधिक मात्रा में प्रखर प्रतीत होती हैऔर उन्हें बहा ले जाती हैतो ले जाने दोवे जितना शीघ्र बह जाएँ उतना अच्छा ही है।

-स्वामी विवेकानन्द

§  तुम अपनी अंत:स्थ आत्मा को छोड़ किसी और के सामने सिर मत झुकाओ। जब तक तुम यह अनुभव नहीं करते कि तुम स्वयं देवों के देव होतब तक तुम मुक्त नहीं हो सकते।

-स्वामी विवेकानन्द

§  ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है। सभी जीवंत ईश्वर हैंइस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करोमनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैंसभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगेमर जाएंगे। तुम अपनी आत्मा के ऊपर स्थिर रहो। 

-स्वामी विवेकानन्द

§  ज्ञान स्वयमेव वर्तमान हैमनुष्य केवल उसका आविष्कार करता है।

-स्वामी विवेकानन्द

§  मानव-देह ही सर्वश्रेष्ठ देह हैएवं मनुष्य ही सर्वोच्च प्राणी हैक्योंकि इस मानव-देह तथा इस जन्म में ही हम इस सापेक्षिक जगत् से संपूर्णतया बाहर हो सकते हैंनिश्चय ही मुक्ति की अवस्था प्राप्त कर सकते हैंऔर यह मुक्ति ही हमारा चरम लक्ष्य है।

-स्वामी विवेकानन्द

§  जो मनुष्य इसी जन्म में मुक्ति प्राप्त करना चाहता हैउसे एक ही जन्म में हजारों वर्ष का काम करना पड़ेगा। वह जिस युग में जन्मा हैउससे उसे बहुत आगे जाना पड़ेगाकिन्तु साधारण लोग किसी तरह रेंगते-रेंगते ही आगे बढ़ सकते हैं।

-स्वामी विवेकानन्द

§  जो महापुरुष प्रचार-कार्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैंवे उन महापुरुषों की तुलना में अपेक्षाकृत अपूर्ण हैंजो मौन रहकर पवित्र जीवनयापन करते हैं और श्रेष्ठ विचारों का चिन्तन करते हुए जगत् की सहायता करते हैं। इन सभी महापुरुषों में एक के बाद दूसरे का आविर्भाव होता हैअंत में उनकी शक्ति का चरम फलस्वरूप ऐसा कोई शक्तिसम्पन्न पुरुष आविर्भूत होता हैजो जगत् को शिक्षा प्रदान करता है।

-स्वामी विवेकानन्द

§  आध्यात्मिक दृष्टि से विकसित हो चुकने पर धर्मसंघ में बना रहना अवांछनीय है। उससे बाहर निकलकर स्वाधीनता की मुक्त वायु में जीवन व्यतीत करो।

-स्वामी विवेकानन्द

§  मुक्ति-लाभ के अतिरिक्त और कौन सी उच्चावस्था का लाभ किया जा सकता हैदेवदूत कभी कोई बुरे कार्य नहीं करतेइसलिए उन्हें कभी दंड भी प्राप्त नहीं होताअतएव वे मुक्त भी नहीं हो सकते। सांसारिक धक्का ही हमें जगा देता हैवही इस जगत्स्वप्न को भंग करने में सहायता पहुँचाता है। इस प्रकार के लगातार आघात ही इस संसार से छुटकारा पाने की अर्थात् मुक्ति-लाभ करने की हमारी आकांक्षा को जाग्रत करते हैं।

-स्वामी विवेकानन्द

§  हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती हैउतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता हैऔर उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।

-स्वामी विवेकानन्द

§  मन का विकास करो और उसका संयम करोउसके बाद जहाँ इच्छा होवहाँ इसका प्रयोग करोउससे अति शीघ्र फल प्राप्ति होगी। यह है यथार्थ आत्मोन्नति का उपाय। एकाग्रता सीखोऔर जिस ओर इच्छा होउसका प्रयोग करो। ऐसा करने पर तुम्हें कुछ खोना नहीं पड़ेगा। जो समस्त को प्राप्त करता हैवह अंश को भी प्राप्त कर सकता है।

-स्वामी विवेकानन्द

§  पहले स्वयं संपूर्ण मुक्तावस्था प्राप्त कर लोउसके बाद इच्छा करने पर फिर अपने को सीमाबद्ध कर सकते हो। प्रत्येक कार्य में अपनी समस्त शक्ति का प्रयोग करो।

-स्वामी विवेकानन्द

§  सभी मरेंगे- साधु या असाधुधनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठोजागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्रचाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बलजिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।

-स्वामी विवेकानन्द

§  संन्यास का अर्थ हैमृत्यु के प्रति प्रेम। सांसारिक लोग जीवन से प्रेम करते हैंपरन्तु संन्यासी के लिए प्रेम करने को मृत्यु है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम आत्महत्या कर लें। आत्महत्या करने वालों को तो कभी मृत्यु प्यारी नहीं होती है। संन्यासी का धर्म है समस्त संसार के हित के लिए निरंतर आत्मत्याग करते हुए धीरे-धीरे मृत्यु को प्राप्त हो जाना।

-स्वामी विवेकानन्द

§  हे सखेतुम क्योँ रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में हैं। हे भगवन्अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप को विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड की कोई शक्ति नहीं प्रबल शक्ति आत्मा की हैं। हे विद्वन! डरो मत्तुम्हारा नाश नहीं हैंसंसार-सागर से पार उतरने का उपाय हैं। जिस पथ के अवलम्बन से यती लोग संसार-सागर के पार उतरे हैंवही श्रेष्ठ पथ मै तुम्हे दिखाता हूँ! (वि.स. ६/८)

-स्वामी विवेकानन्द

§  बडे-बडे दिग्गज बह जायेंगे। छोटे-मोटे की तो बात ही क्या है! तुम लोग कमर कसकर कार्य में जुट जाओहुंकार मात्र से हम दुनिया को पलट देंगे। अभी तो केवल मात्र प्रारम्भ ही है। किसी के साथ विवाद न कर हिल-मिलकर अग्रसर हो -- यह दुनिया भयानक हैकिसी पर विश्वास नहीं है। डरने का कोई कारण नहीं हैमाँ मेरे साथ हैं -- इस बार ऐसे कार्य होंगे कि तुम चकित हो जाओगे। भय किस बात काकिसका भयवज्र जैसा हृदय बनाकर कार्य में जुट जाओ।
(विवेकानन्द साहित्य खण्ड-४पन्ना-३१५) (४/३१५)

-स्वामी विवेकानन्द

§  तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कुद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उध्दार में लगे हुए हैंवे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर - गुल मचाओ की उसकी आवाज़ दुनिया के कोने कोने में फैल जाय। कुछ लोग ऐसे हैंजो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैंकिन्तु कार्य करने के समय उनका पता नही चलता है। जुट जाओअपनी शक्ति के अनुसार आगे बढो।इसके बाद मैं भारत पहुँच कर सारे देश में उत्तेजना फूँक दूंगा। डर किस बात का हैनहीं हैनहीं हैकहने से साँप का विष भी नहीं रहता है। नहीं नहीं कहने से तो 'नहींहो जाना पडेगा। खूब शाबाश! छान डालो - सारी दूनिया को छान डालो! अफसोस इस बात का है कि यदि मुझ जैसे दो - चार व्यक्ति भी तुम्हारे साथी होते -

-स्वामी विवेकानन्द

§  तमाम संसा हिल उठता। क्या करूँ धीरे - धीरे अग्रसर होना पड रहा है। तूफ़ान मचा दो तूफ़ान! (वि.स. ४/३८७)

-स्वामी विवेकानन्द



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